राजनांदगांव. संस्कृति प्रकृति के गहन अंर्तसंबंध से परिपूरित हमारे पर्व त्यौहार को नित्य जीवनचर्या कर्मकार्य में महत्ता प्रभाविता पर नगर के विचारप्रज्ञ प्राध्यापक कृष्ण कुमार द्विवेदी ने विशेष आह्वान चिंतन टीप में बताया कि भारतीय सनातन संस्कृति की अनुपम अद्वतीय पर्व-उत्सव परंपरा विशेषकर शारदेय नवरात्रि से शरद पूर्णिमा, करवाचौथ, धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा से देवउठनी तक के समस्त पर्व मूलत: प्रकृति के साथ सहज, सरल, सरस अनुकूलन के संदेश पर्व है। उल्लेखनीय है कि परम वैभव माँ भारती की इन अनूठी पर्व उत्सव-त्यौहार परंपराएं सत्य-सनातन काल से प्रकृति-पर्यावरण-पारिस्थितिकी की संरक्षक संवर्धक रही है। इनके परम पावन अद्भूत प्रकृति अनुकूलन के संदेश जल, मिट्टी, वायु पर्यातत्वों के विशुद्ध बनाये रखने और अपने कर्मकार्य से संवर्धित करने की अभिप्रेरणा भी देते हैं। आगे प्राध्यापक द्विवेदी ने विशेष जोर देकर स्पष्ट किया कि वर्तमान युवा, किशोर, प्रबुद्ध पीढ़ी को चाहिए कि पर्वो की जीवन में महत्ता तथा उनकी अद्वितीय सांस्कृतिक शिक्षा-संस्कार, संदेश को जाने, समझे और परायण करें, पर्वो को केवल मनोरंजन का अवसर न मानकर वरन् विशुद्ध रचनात्मक ज्ञानरंजन का शुभ मंगल अवसर मानते हुए अपने व्यक्तित्व-कृतित्व को समृद्ध कर देश-धरती की समग्र विकास यात्रा में सक्रिय सहभागीदारी निभायें। वस्तुत: सर्वजन-जन के लिए आवश्यक होगा कि हमारे इन पावन पर्वो पर पर्यावरण-प्रकृति संतुलन के समस्त कार्यो को पूर्ण मनोयोग से विशेषकर अपने घर-आंगन, सार्वजनिक परिसरों को नये पेड़ पौधों से रोपित करें। जल स्रोतों, नदी-तालाबों को स्वच्छ रखें। सफाई करें, मिट्टी को क्षरण प्रदूषण से बचाएं और हमेशा ऋतुओं के अनुसार प्राकृतिक नियमों से परिपालन करते हुए जैवविविधता को समृद्ध बनाये रखने हेतु पशु-पक्षी, जलचर आदि सभी की संरक्षा करें तथा ठोस अपशिष्ट, कार्बन विसर्जन और प्लास्टिक प्रदूषण से धरती माता को मुक्त रखने में अपनी अनिवार्य भूमिका अदा करें। यही हमारे इन पर्व, त्योहार, उत्सवों का मूल संदेश है और उनकी महत्ता है।
