पितृपक्ष पूर्वजों की स्मृति में पंच-वृक्ष लगायें – द्विवेदी

राजनांदगांव. भारतीय सनातन संस्कृति की अद्भूत महत्तम पितृपक्ष (श्राद्ध तर्पण) परपंरा को अखिल विश्व में अनुपम, अद्वितीय पूर्वजों के पुनीत स्मरण कर्मकार्य निरूपित करते हुए नगर के संस्कृति-पर्या विद् प्राध्यापक कृष्ण कुमार द्विवेदी ने समसामयिक विचार चर्चा में बताया कि सनातन संस्कृति मान्यता अनुसार मृत्यु होने पर मनुष्य की जीवात्मा चंद्र लोक की ओर विचरण कर आगे और उच्चस्थ होकर पितृलोक में पहुंच जाती है। इन शांत आत्माओं को नियत मोक्ष तक पहुंचने की शक्ति प्रदान करने के लिए ही श्राद्ध तर्पण का विधान किया जाता है। पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण की मुख्य क्रिया में जौ, काले तिल, उड़द के साथ सूर्याभि जल अभिसिंचन, दीपांजली तथा पंचजीव भोजन गाय, कौंवा, कुत्ता, चींटी मानव श्रेष्ठ स्वरूप ब्राम्हण भोज कराने की अनुपम परंपरा है। जो वस्तुत: प्राकृतिक पारिस्थितिक संतुलन हेतु जैव विविधता को सहज रूप से संरक्षित, संवर्धन करने का प्रत्यक्ष कार्य उपक्रम होता है। वैसे भी मानव शरीर प्रकृति के मूल पंचतत्वों-जल, मिट्टी, वायु, अग्नि, आकाश के संतुलित संगठन से ही बनता है। और शांत होने पर उसके यही पंचतत्व प्रकृति में मिलकर पुन: पर्यावरण, वातावरण को समृद्ध करते रहते हैं। इसीलिए श्राद्ध तर्पण प्रक्रिया में यथाशक्ति सामर्थ के अनुसार अन्न-भोजन, वस्त्र-धन दान की श्रेष्ठ पावन परंपरा स्थापित है। जिससे हमारा प्राकृतिक पर्यावरण जैव विविधता सतत् समृद्ध होती रहें। वर्तमान में भी प्रत्येक सनातनी परिवार इस पंरपरा का सहजता से निर्वहन करता है और अपने पितरों/पूर्वजों का पुण्य स्मरण करता है। आगे प्राध्यापक द्विवेदी ने स्पष्ट किया कि श्रेयष्कर होगा कि सामयिक आवश्यकता के अनुरूप हम श्राद्ध तर्पण कर्मकार्य को और अधिक रचनात्मक एवं पूर्वजों की स्मृति को दीर्घावधि तक बनाये रखने के लिए अपने घर-आंगन, खेत-खलिहान और सार्वजनिक स्थलों में फल-फूल वाले वृक्षों का रोपण अवश्य करें। प्रतिवर्ष संकल्पित होकर पितृ-पक्ष में अपने पूर्वजों की स्मृति में आम, आंवला, अमरूद, जामुन, बेल, नीम, बरगद, पीपल, केला आदि के कम से कम पंचवृक्षों का रोपण पहल करके अवश्य करें इस सर्वकल्याणकारी पहल से पूर्वजों की स्मृति अधिक स्थायी होगी और सहज-सरल रूप में पूर्वजों का आशीर्वाद प्रत्यक्षत: पर्यावरण विशुद्ध होकर फलीभूत होगा। यही हमारे ऋषियों, मनीषियों द्वारा स्थापित पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण परंपरा का परम उद्देश्य है।