पर्वत मानव सभ्यता के परम संरक्षक – द्विवेदी

राजनांदगांव. विश्व पर्वत दिवस के अत्यंत महत्तम अवसर पर शासकीय कमला देवी राठी महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के भूगोल विभाग द्वारा विशेष व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया। संस्था प्राचार्य डॉ. सुमन सिंह बघेल के प्रमुख दिशा-निर्देशन में आयोजित अकादमिक व्याख्यान कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष प्रो. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने ÓÓपर्वतों का मानव जीवन पर प्रभावÓÓ विषय पर अपने प्रभावी व्याख्यान में छात्राओं को बताया कि मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही पर्वत मानव सहित समग्र जीव-जगत के प्राण-रक्षक, शरण स्थल और प्रगति-विकास के मूल आधार रहे हैं। प्राकृतिक-सीमा निर्धारण अनुकूल जलवायु, सदावाहिनी नदियों, प्राकृतिक सौंदर्य के अनुपम प्रतीक झील-झरनों के उदगम स्रोत पर्वत, रसीले-स्वादिष्ट फलों, मेवों, सुंदर सुगंधित फूलों, उपयोगी लकड़ी के वृक्षों के भी सदा-सर्वदा से मूल आधार स्थल रहे हैं। वस्तुत: उबड़-खाबड़, तीव्र -ढाल स्वरूप के बावजूद अति स्वादिष्ट-सुगंधित चांवल, चाय और अमोघ औषधियों की बहुमूल्य खेती के आधार पर्वत और उनकी हरी-भरी वादियां देश-धरती के प्रमुख पर्यटन स्थलों में आती हैं। वस्तुत: मानव सभ्यता के लिए सर्वहितकारी-कल्याणकारी पर्वतीय क्षेत्र श्रेष्ठतम मनोरंजन, स्वास्थ्य वर्धन और परम शांति के विश्राम स्थल माने जाते हैं। और हमारे देश-प्रदेश में तो अध्यात्म साधना, तपस्थली के रूप में हिमालय, अरावली, विंध्याचल, सतपुड़ा, धारवाड़ सहित प्रदेश के बस्तर, सरगुजा, रायगढ़, जसपुर के पर्वतीय क्षेत्र अपार धात्विक अयस्कों, खनिजों और ऊर्जा संसाधनों के वृहद विशाल भंडार है। भारतीय सनातन संस्कृति परंपरा में पर्वतों को हमेशा से देव-तुल्य माना गया है। विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला हिमालय को देवात्मा की संज्ञा दी जाती है। भारत-भूमि की भीषण शीत-लहरों से रक्षा के साथ-साथ मानसूनी वर्षा का आधार हिमालय से निकली गंगा, यमुना, ब्रम्हपुत्र सहित समस्त सदा नीरा नदियों से अति उर्वर उपजाऊ मिट्टी प्रदेशों का निर्माण करने का पवित्र धामों, आध्यात्मिक तीर्थो, कैलाश, केदारनाथ, बद्रीनाथ, ऋषिकेश, हरिद्वार, वैष्णो देवी स्थलों को समाये हिमालय सर्व जनों के लिए वस्तुत: देवात्मा ही है। आगे प्राध्यापक द्विवेदी ने समसामयिक परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से बढ़ते पर्यावरण असंतुलन तथा प्रदूषण और अत्याधिक वृक्षों की कटाई से पर्वतों का अत्यधिक क्षरण, अपरदन हुआ है जो अत्यधिक चिंताजनक है। जिससे मानव सभ्यता के संरक्षक पर्वत आज उजाड़ होकर विनष्टता के कगार पर आ गये हैं। विश्व पर्वत दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य यही है कि सर्व-जन -जन पर्वतों के संरक्षण के लिए जागरूक हों तथा पर्वत के प्राकृतिक स्वरूप बचाने के लिए पहल करें। हरियाली बढ़ायें-पर्वत बचायें, पर्वत बचेंगे तो सभ्यता भी बचेगी। व्याख्यान के अंत में विषयक छात्राओं ने पर्वत संरक्षण, संवर्धन के लिए स्वयं जागरूक होकर सभी को जागरूक करने का संकल्प भी लिया।