राजनांदगांव. विश्व की अद्वितीय भारतीय सनातन संस्कृति के ऋतुपर्व परंपरा के महत्तम बसंत पंचमी पर्व के परम पावन परिप्रेक्ष्य में नगर के विचारविज्ञ प्राध्यापक कृष्ण कुमार द्विवेदी ने विशेष चिंतन टीप में बताया कि ज्ञान-विज्ञान, विद्या-शिक्षा, गीत-संगीत, कला-शिल्प की परम आराध्य देवी माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना को समर्पित बसंत पंचमी हमारी गौरवशाली प्रकृति संस्कृति, समृद्धि -संवर्धन का उत्सवा पर्व है। वीणा-वादिनी माँ सरस्वती का पूजन दिवस बसंत पंचमी देश-प्रदेश में पुस्तक पूजा, प्रकृति-पूजा बाल पीढ़ी के विद्या शुभारंभ पोथी-पट्टी पूजा के रूप में प्रमुखता से मनाया जाता है। माघ शुक्ल पंचमी के दिवस जन-जन, पवित्र स्नान-ध्यान के साथ पीत वस्त्र धारण कर माँ सरस्वती का पूजन अत्यंत पुण्यकारी, सुफलदायी माना गया है। वैदिक, पौराणिक मान्यता अनुसार कुन्द, पुष्प, चन्द्र-हिम राशि और मोती के समान श्वेत वर्ण वाली, हस्त में वीणा दण्ड लिए श्वेत कमल पर विराजित माँ सरस्वती समग्र ब्रम्हाण्ड के त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-शिव द्वारा सर्वदा पूजित माँ सरस्वती की आराधना-पूजा-वंदन सहज रूप से मानव को जड़ता अज्ञान को दूर कर विद्या, ज्ञान का श्रेष्ठतम वर देती है। आगे प्राध्यापक द्विवेदी ने विशेष रूप से बताया कि माँ सरस्वती की आराधना, वंदना, वास्तव में व्यक्ति श्रेष्ठतम प्रबुद्धता के साथ रचनात्मक कला-कौशल की अभिव्यक्ति के लिए प्रेरित करती हैं तथा हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को और अधिक संवर्धित करने हेतु संकल्पित होने का परम अवसर भी होता है। साथ ही बसंत पंचमी का पर्व हम सभी को प्राकृतिक सांैदर्य हरियाली, हरितिमा से समृद्ध रंग-बिरंगे पुष्पों से आच्छादित, वृक्ष-लताओं के घर-आँगन, सार्वजनिक स्थलों, प्राकृतिक वादियों में संरक्षण-संवर्धन के लिए भी प्रेरित करता है। आईये प्रकृति- संस्कृति-संवर्धन-संरक्षण के इस महापर्व को जीवनचर्या में रचनात्मक श्रेयष्कर कार्यवृत्ति धारण करनें एवं देश-धरती के प्राकृतिक, सांस्कृतिक समृद्धि का आधार उत्सवा पर्व बनायें। यही बसंत पंचमी पर्व का जनगण-प्रबुद्ध जन के लिए सद-संकल्प होगा।
