मातृभाषा सांस्कृतिक समृद्धि की मूल आधार – द्विवेदी

राजनांदगांव. –अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अतीव महत्तम परिप्रेक्ष्य में नगर के विचारप्रज्ञ प्राध्यापक कृष्ण कुमार द्विवेदी सामयिक विचार चिंतन टीप में बताया कि मातृभाषा सांस्कृतिक समृद्धि की मूल आधार होती है। विशेषकर घर-परिवार में पालित बच्चों में संस्कार-शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य मातृभाषा के माध्यम से ही माता-पिता एवं अग्रज के द्वारा सहजता से होता है। मातृभाषा का अत्यंत सहज, सरल, सहज स्वरूप तथा ध्वनि रूप एवं उससे जुड़े हाव-भाव को छोटा शिशु अपने जन्मकाल से देख-समझ कर आत्मसात कर लेता है और जिसे वह जीवन पर्यंत स्मृत रखता है। उल्लेखनीय है कि क्षेत्रीय संस्कृति, मातृभाषा और उसका समाज एक दूसरे से गहन रूप से जुड़ा होता है। वैसे भी श्रेष्ठ, उत्कृष्ट ज्ञान-शिक्षा अर्जन यदि मातृभाषा में होता है तो वह अधिक सरल, पूर्णत: ग्राह्य होने के साथ-साथ व्यक्ति के व्यक्तित्व और कृतित्व के विकास-विस्तार को बहुत ही सरलता से श्रेयष्कर बना देता है। इसीलिए सत्य-सनातन काल से हमारे यहाँ माता को प्रथम गुरू माना गया है। गुरूकुल में भी गुरूमाता की मातृभाषा में दी गई सीख शिक्षार्थी को और अधिक उन्नत बनाती थी। आगे समसामयिक परिप्रेक्ष्य में प्राध्यापक द्विवेदी ने जोर देकर कहा कि हमें अपनी उत्कृष्ठ सांस्कृतिक विविधता, अद्वितीय ज्ञान परंपरा को हमने जिस प्रकार से स्थानीय भाषा, मातृभाषा के माध्यम से जीवंत बनाये रखा है उसे और अधिक समृद्ध करने, संवर्धित करने के लिए हमें अपनी मातृभाषाओं को पूर्ण सम्मान देकर संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करना होगा और प्राथमिक स्तर से लेकर माध्यमिक और उच्च स्तर तक मातृभाषा में ही यदि शिक्षा प्रदान की जाती है तो वह वर्तमान पीढ़ी के लिए सर्वोत्कृष्ठ व्यवस्था होगी। हमारी नयी शिक्षा नीति भी इसी पर आधारित है। हमारी भाषायी बहुलता और क्षेत्रीय भाषाओं की महत्ता है कि हम विश्व में सर्वाधिक समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और गौरवशाली संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। आईये अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर सार्वजनिक रूप से संवाद-विमर्श और लेखन के लिए संकल्पित हों। यही मातृभाषा दिवस का श्रेष्ठ, सार्थक संदेश होगा।