अंतर्राष्ट्रीय अग्रवाल सम्मेलन महिला इकाई छत्तीसगढ़ प्रांत द्वारा विगत साढ़े पंद्रह माह से प्रतिदिन आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम की श्रृंखला में  15/5/2022 रविवार को दोपहर तीन बजे से गूगल मीट पर *अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस* के उपलक्ष में आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम।

*संयुक्त परिवार ही समपूर्ण सुख की पूंजी है रामचंद्र सारंगढ़*
*हर व्यक्ति को क्षमा सहनशीलता का परिचय देने को प्राथमिकता देनी होगी तब ही राम राज्य धरती पर होगा @ नथुराम, सुभाष, नित्यानंद*

अंतर्राष्ट्रीय अग्रवाल सम्मेलन महिला इकाई छत्तीसगढ़ प्रांत द्वारा विगत साढ़े पंद्रह माह से प्रतिदिन आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम की श्रृंखला में 15/5/2022 रविवार को दोपहर तीन बजे से गूगल मीट पर *अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस* के उपलक्ष में आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम।

कार्यक्रम का श्री गणेश डॉ अनीता अग्रवाल ने अपने निवास स्थान पर भगवान राम दरबार में रोली अक्षत चढ़ा श्री फल चढ़ा माल्यार्पण कर मंत्रोचार से दीप प्रज्वलित कर, राष्ट्रगान गान की सामूहिक प्रस्तुति से किया।
*सबिता अग्रवाल* ने गणेश वंदना, *निशा गोयल* ने पितरों जी की स्तुति, *अंशु अग्रवाल* ने गुरु वंदना प्रस्तुत किया।

डॉ अनीता ने अपने स्वागत उद्बोधन में सभी अतिथियों और सदस्यों का स्वागत वंदन अभिनंदन किया।उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस पर सभी को शुभ कामनाएं बधाई प्रेषित कर संयुक्त परिवार का महत्व बताया।हर व्यक्ति को क्षमा सहनशीलता का परिचय देने को प्राथमिकता रखनी होगी।

*उषा कलानोरिया* अध्यक्ष बारदवार इकाई कार्यक्रम संयोजिका संचालिका ने सभी अतिथियों का संक्षिप्त जीवन परिचय प्रस्तुत कर उनका स्वागत करवा उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया।
कार्यक्रम अध्यक्ष *रामचंद्र अग्रवाल* सारंगढ़ अग्रवाल सभा के अध्यक्ष ने अपनी अभिव्यक्ति में बताया की संस्कारित होना अति अनिवार्य है अगर सनातन हिंदू संस्कृति का निर्वहन करे तो एकता की मिसाल स्थापित कर सकते हैं।

मुख्य अतिथि *नाथूराम केडिया* सारंगढ़ गायत्री विद्या पीठ के संरक्षक सदस्य ने अपनी अभिव्यक्ति में बताया बाल काल से ही हमे हमारे बच्चो को परिवार का महत्व बताना चाहिए जिससे आदर सत्कार की पराकाष्ठा स्थापित पुनः कर सकेंगे।

विशिष्ट अतिथि *नित्यानंद अग्रवाल* समाज सेवक बिलासपुर ने अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस पर संयुक्त परिवार की महत्ता पर प्रकाश डाला।दुनिया के हर देश में परिवार होता है, जिसमें माता-पिता, पति-पत्नी, बच्चे और कई रिश्ते जुड़े होते हैं।

विशिष्ट अतिथि *सुभाष अग्रवाल* कपड़े व्यवसाई सारंगढ़ ने अपनी अभिव्यक्ति में बताया हर शख्स के लिए परिवार अहम भूमिका निभाता है। अमीर हो या गरीब, अपराधी हो या कोई अधिकारी परिवार तो हर किसी के जीवन का एक जरूरी हिस्सा है। परिवार की इसी भूमिका को सेलिब्रेट करने के लिए हर साल 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है। सशक्त देश के निर्माण में परिवार एक अभूतपूर्व संस्था है, जो व्यक्ति के विकास के साथ ही समाज के विकास में योगदान देता है। भारत जैसे देश में रिश्ते-परिवार को बहुत ही सम्मान दिया जाता है। ऐसे में लोग अपने परिवार के साथ यह दिन यादगार तरीके से मनाते हैं।

*सुलोचना धनावत* प्रचार प्रसार प्रभारी ने अपनी अभिव्यक्ति में बताया “संयुक्त एवं एकल परिवार”

पारिवारिक जीवन के सुख की तुलना मरुभूमि के जल बिन्दु से की गई है ।कोई चाहकर भी परिवार के उत्तरदायित्व से मुकर नहीं सकता ।किन्तु आजकल व्यक्ति अपने दायित्व को भूल ,पारिवारिक जीवन का परित्याग कर कठोर बन रहा है। यह सांसारिक दावाग्नि का अंग स्वरुप है।
करुणा,ममता,स्नेह,वात्सल्य ये ऐसे गुण हैं जो आपस में जोड़ते हैं। परिवार का प्रत्येक व्यक्ति इक-दूजे का संबल होता है,किसी से हुई भूल को दिल से ना लगायें ,क्षमा का भाव रखने से आपस के रिश्ते मजबूत बनते हैं। प्यार से बोले गये बोल सुख की अनुभूति देते हैं।
आज के बच्चों की भावना में शुरु से ही स्वार्थ चेतना आजाती है।खाओ,कमाओ और जमा करो यही संस्कार रुप में दिये जाते हैं जिससे संग्रह एवं लोभ की वृति बनती है ।माता-पिता की इच्छा होती है, संतान को अच्छी डिग्री दिला दें ताकि वह अच्छी कमाई कर अपना जीवन एशो-आराम से जी सके ।धन कमाना ही जीवन का उद्देश्य हो गया है ,संस्कार निर्माण गौण हो गया है ।

*निमिषा गोयल* पत्थलगांव ने अपनी अभिव्यक्ति में बताया भारतीय समाज में परिवार को दो भागो में विभाजित किया जाता है. जिसमे एक संयुक्त और दूसरा एकल परिवार है. भारत के प्राचीन समाज का स्वरूप संयुक्त परिवार है, वहीं आधुनिक समाज का स्वरूप एकल परिवार है.

प्राचीन समय में एक ही परिवार में दादा दादी चाचा चाची ताऊ ताई भुआ माता पिता और बच्चे रहते थे, यानी दो या दो से अधिक पीढ़िया रहती थी. जिसे हम संयुक्त परिवार कहते है. पर आज ये विभाजित होकर एकल परिवार बन गए है.

संयुक्त परिवार वो परिवार होता है. जिसमे सभी एक साथ रहते है. तथा एक ही छत के नीचे खाना खाते है. और एक ही छुले से भोजन बनाते है. और सभी प्रेम से रहते है. वर्तमान में ये परिवार बहुत कम देखने को मिलते है.

एक बड़े परिवार के अनेक सदस्य होते है, जो मुसीबत में काम आते है. जिस कारण संयुक्त परिवार के कई लाभ माने जाते है. जिसमे वित्तीय भागीदारी श्रम भागीदारी तथा मुसीबत में सहायता भी मिलती है.

संयक्त परिवार में सभी जिम्मेदारी दादाजी के पास होती है. जिस कारण परिवार का मुखिया दादाजी होते है. जो सभी को बाँटकर कार्य देते है. और परिवार का उच्च संचालन करते है. जिस परिवार में बड़ा मुखिया होता है. उस परिवार में लड़ाई झगडा भी बहुत कम होता है.

संयुक्त परिवार में सभी मिलकर कमाते है. और सभी मिलकर खाते है. हर सम्पति में सभी का समान अधिकार होता है. और सभी समान रूप से श्रम करते है. सभी अपना मुखिया एक को ही मानते है. जिससे परिवार का सञ्चालन करना सरल हो जाता है.

कुछ समस्याएं होती है, जो एकल परिवार में होती है. पर संयुक्त परिवार में नहीं होती है. जैसे एकल परिवार में निर्णय खुद द्वारा लिया जाता है. जो गलत भी हो सकता है. पर संयुक्त परिवार में बड़ो द्वारा हर निर्णय लिया जाता है. और उसे कई बार निहारकर कार्य किया जाता है. जिससे गलती की कोई गुंजाईश नहीं रहती है.

एकल परिवार में माता पिता और बच्चे होते है, जो किसी भी संकट में फंस सकते है. पर संयुक्त परिवार एक समूह होता है. जो हर बाधा को तोड़ने की क्षमता रखता है.

संयुक्त परिवार की भांति एकल परिवार में अत्यधिक घरेलु विवाद होते है. क्योकि एकल परिवार में कोई समझाने वाला भी नहीं होता है. जिस कारण विवाद बढ़ते है. पर संयुक्त परिवार में इसकी कोई गुंजाईश भी नहीं होती है.

कई बार बच्चे बड़े होकर अपनी पत्नी को लेकर माता पिता को घर से निकाल देते है. पर इस समय उन्हें कोई समझाने और उनके जीवन को सही दिशा दिखाने वाला नहीं होता है. जिस कारण एकल परिवार से संयुक्त परिवार श्रेष्ठ है.

संयुक्त परिवार का सञ्चालन करना एक राष्ट्र के संचालन के समान है. और ये दायित्व दादाजी के पास होता है. जो अपने आत्मविश्वास और बुद्दि से इस कार्य को करते है. परिवार के भी अपने नियम होते है. जिनके अनुसार सभी को चलना पड़ता है.

परिवार के नियम सविंधान की तरह ही होते है. उनका उलंघन करना अपराध है. ओर परिवार के नियमो को तोड़ने पर फांसी तो नहीं दी जाती है. पर बड़ो से डांट खानी पड़ती है. और परिवार के सभी नियमो को पालना हर सदस्य करता है. क्योकि परिवार के नियम ही सुरक्षा है.

संयुक्त परिवार को हम स्वर्ग भी कह सकते है. क्योकि इस परिवार का परिवेश भी स्वर्ग के सामान ही होता है. माता पिता दादा दादी और चाचा चाची का साथ मिलता है. ताऊ ताई का प्यार बच्चो को बहुत भाता है. और संयक्त परिवार के बच्चे सबसे अधिक संस्कारवान होते है.

एकल परिवार में बच्चो के पास न कोई सहपाठी होता है. और न ही कोई खेलने लायक बच्चा वहीं संयुक्त परिवार में चाचा का हो या ताऊ का बच्चा सभी सहजता के साथ मिलकर खेलते है. और पढ़ते है. जिससे उन्हें बहुत आनंद आता है.

संयुक्त परिवार का सबसे बड़ा नियम बडो का सम्मान और छोटो से प्रेम होता है. जिस कारण इस परिवार में प्रेमभाव हमेशा बना रहता है. इस गुण के कारण इस परिवार के लोग संस्कारवान होते है.

आज के समय में वे संयुक्त परिवार जिसमे 40-50 लोग रहते थे. दादाजी संचालन करते थे. वे परिवार आज न के बराबर ही सिमित है. किसी न किसी कारणवश लोग एकल परिवार में टूटते जा रहे है. और अकेले जीवन व्यतीत कर रहे है.

आज के ग्रामीण इलाको में फिर भी गिने चुने संयुक्त परिवार विद्यमान है, पर शहर में ये विलुप है. जिस कारण आज अपराध आवारागर्दी तथा चोरी जैसे मामले बढ़ रहे है. संस्कारो को कमी लोगो में नजर आ रही है.

संयुक्त परिवार के कई लाभ है. जिस कारण ये हमे बहुत पसंद आता है. पर इसके कई नुकसन भी है, जिस कारण आज संयुक्त परिवार कम हो रहे है. और एकल परिवार बढ़ रहे है. लोग अकेलापन पसंद कर रहे है.

संयुक्त परिवार में कुछ लोग ऐसे भी होते है, जो दूसरो की कमाई से जीवन जीते है. और खुद ऐशो आराम का जीवन जीते है. जिस कारण कमाई करने वाला सोचता है. मै इन्हें क्यों कमाकर खिलाऊ इसके बजाय में अलग होकर खुद कमाकर धन इकठ्ठा कर लूँ. इस स्वार्थ में आकर सभी एकल परिवार को अपनाते है.

कुछ परिवार बच्चो के कारण टूट जाते है. जिससे बच्चो के बीच के झगड़े को बड़ा रूप देकर लड़ाई झगडा कर देते है. जिस कारण विवाद्वश परिवार टूट जाता है. बच्चो के लिए अहम निर्णय लेना परिवार के लिए संकट साबित होता है.

संयुक्त परिवार में ख़ुशी से जीवन जीने के लिए सभी कार्य सभी की सहमती से हो तथा सभी अपनी सहभागिता से कार्य को करे. संयुक्त परिवार से ही हमारा विकास संभव है.

आज हमें संयुक्त परिवार को विलुप्त होने से बचाना है. और सभी को मिलझुलकर एक सरल जीवन जीना है. संयुक्त परिवार का निर्माण करे. तथा अपने जीवन में उन्नति करें.
कटु है पर सत्य है, व्यक्ति पर परिवार का साया न होने पर व्यक्ति अनाथ कहलाता है। इसलिए समृद्ध या गरीब परिवार का होना आवश्यक नहीं पर व्यक्ति के जीवन में परिवार का होना अतिआवश्यक हैं।

मेरे विचार में परिवार के लिए सारांश!!
संयुक्त परिवार में सभी सदस्य मिलकर एक साथ नवरात्रि, जन्म संस्कार, विवाह संस्कार, मृत्यु संस्कार, श्राद्ध पछ और जितने भी त्यौहार है सब एक साथ मिलकर करते हैं, जिसमे छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक को खुशी मिलती हैं, बड़ों का आशीर्वाद भी मिलता है!! सभी में एकता देखने को मिलती है! जबकि ऐसा एकल परिवार में नही होता है! अकेले अकेले सब कुछ करना पड़ता है!!

परिवार का विघटन का प्रमुख कारण= एक दूसरे के प्रति आपसी समझ की कमी, माता पिता का बच्चों के लिए झगड़ा करना , बड़ों की बातों को अनसुना करना और भी बहुत से कारण है!!

*भगवती अग्रवाल* अध्यक्ष कोरबा इकाई ने अपनी अभिव्यक्ति में बताया परिवार को रोता *घर-आंगन*
बहुत बड़ा आंगन बाडे का, रोज लिपाया जाता था|
चौक लीप कर रोज सुबह,रंगोली से सजाया जाता था॥
सांझ भये जब बाबा ताया बैठे खटिया डाल|
उनके कितने मित्र आते,जाते जाने हाल- चाल॥
सांझ भये आंगन में बच्चे, लंगड़ी टिक्कर खेले थे|
पडछी भीतर ताई,अम्मा,बुआ जी के मेले थे॥
ऐसे थे कुछ दिल के रिश्ते,प्रेम प्यार में बधें हुए|
सदा रहे थे हंसते चेहरे,संस्कारों से सजे हुए॥
इन रिश्तो की खातिर,बड़े बुजुर्ग करें कुर्बानियांँ|
कितनी बार क्षमा करी है,छोटों की नादानियांँ॥
छोटे भी सब आदर दे कर,उनकाे प्यार करते थे|
चुम्मी,बलैया लेकर, देकर,घर गुलज़ार करते थे॥
जाओ कहीं धूंडकर लाओ,वो रिश्ते पुराने|
टुकड़े *हम* के हो गये, सभी एक *स्व* (मै) के लाने॥
परिवार सदा उम्मीदों को उड़ान देते हैं और हर समस्या का समाधानदेते हैं कठिनाइयों के समंदर में अगर फँसे बीच भँवर में पतवार बना देते हैं परिवार किसी भी समाज या देश का आधार भी होता है और आइना भी। परिवार का आकार और संस्कार बता देता है कि इस देश के अतीत र्वतमान के साथ उसका भविष्य क्या होगा संयुक्त परिवार में ही नैतिकता , मर्यादाएं और संस्कार साझा होते हैं एकल परिवार में यह भाव खंडित हो सकते हैं या हो जाते हैं सदियों से चली आ रही परंपरा संयुक्त परिवार में 1 ही पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्वाभाविक रूप से विरासत में मिल जाती है इस दौर में जब संयुक्त परिवार समझ रहे हैं टूट रहे हैं हमें कोशिश करनी चाहिए की हम अपनी उन पुरानी परम्पराओं को जीवंत करें विघटन का कारण है मैं मैं और आज़ादी का ग़लत मतलब निकालना माँ बाप के संसकारो में कमी और आपसी तालमेल की कमी है।

*डिंपल अग्रवाल* अध्यक्ष सरिया इकाई ने अपनी अभिव्यक्ति में बताया
भैरोंसिंह शेखावत (२३ अक्टूबर १९२५ – १५ मई २०१०) भारत के उपराष्ट्रपति थे। वे १९ अगस्त २००२ से २१ जुलाई २००७ तक इस पद पर रहे। वे १९७७ से १९८०, १९९० से १९९२ और १९९३ से १९९८ तक राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे। वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे।

*उषा* ने सभी अतिथियों और सदस्यों को उनकी उपस्तिथि अभिव्यक्ति और प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ज्ञापित कर, स्मृति चिन्ह भेंट कर, विश्व कल्याण की भावना से शांति पाठ द्वारा कार्यक्रम का विधिवत समापन किया।

कार्यक्रम में रामचंद्र अग्रवाल, सुभाष अग्रवाल, नथुराम अग्रवाल, नित्यानंद अग्रवाल, नंदिनी चौधरी, सबिता अग्रवाल, पार्बती अग्रवाल, अंशु अग्रवाल, भगवती अग्रवाल, डिंपल अग्रवाल, वंदना अग्रवाल, उषा अग्रवाल, सुलोचना धनावत, निशा गोयल, निमिषा गोयल, लक्ष्मी गोयल, राजकुमारी गुप्ता, तारा बेरीवाल उषा कलानोरिया, उषा अग्रवाल ने अपने उद्बोधन से कार्यक्रम को सफल बनाया।