बिलासपुर और उसके आसपास लगे क्षेत्रों में वर्षों से अवैध रेत उत्खनन की जा रही है किंतु प्रशासन सब कुछ जानने के बावजूद भी इन पर कोई कार्यवाही नहीं करती केवल दिखावे के लिए इन सब पर छुटपुट कार्यवाही करके इन्हें छोड़ दिया
जाता है जिसका नतीजा है कि इन अवैध रेत माफियाओं के हौसले बुलंद हैं और यह शहर की जीवन रेखा कही जाने वाली अरपा नदी से रेत निकाल कर ऊंची कीमतों पर इसे खफा रहे हैं जिसका नतीजा है की जहां नदी में रेत कम हो रही है तो वहीं उन नदी पर बने पुल की मजबूती भी खतरे में पड़ रही है इसके साथ ही इन रेत माफियाओं के द्वारा अपराधिक
गतिविधियां भी बढ़ती जा रही है बिलासपुर से 15 किलोमीटर तक की नदी किनारे में बसे एक गांव में लोगों ने अपनी आय का प्रमुख जरिया अवैध रेत उत्खनन को बना लिया है चाहे वह घुट्कु का रेत घाट हो, मंगला का रेत घाट ,लोखंडी का हो, कोनी का हो, तुर्काडीह का हो, भाड़म का हो, लोखंडी का हो
कछार, सिंदरी या फिरनेरतू का हो इन सब जगहों पर अवैध रेत उत्खनन धड़ल्ले से चल रहा है रेत उत्खनन में लगे वाहनों पर प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जाती ऐसा नहीं है कि प्रशासन को आते जाते इन अवैध रेत उत्खनन के बारे में पता नहीं चलता हो लेकिन फिर भी इन सब के पीछे आंख मूंद करके बैठना यह समझ में नही आता है कि प्रशासन मौन क्यों है अवैध रेत उत्खनन में प्रयुक्त होने वाले वाहनों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है अरपा किनारे बसे गांव में लोगों ने अपने वाहनों को इन अवैध उत्खनन में लगा रखा है जिनसे उन्हें काफी मोटी कमाई भी होती है एक सर्वे के मुताबिक पिछले कई सालों में बिलासपुर के आसपास के पंचायतों में लोगों के पास ट्रैक्टरों की संख्या में इजाफा हो गया है जहां पहले 90 ट्रैक्टर हुआ करते थे आज इनकी संख्या बढ़कर 465 के आसपास पहुंच गई है जो यह साफ दर्शाता है कि यह टैक्टर कृषि कार्य में नहीं बल्कि अवैध रेत उत्खनन के लिए बड़ी मात्रा में लगाए गए हैं हालांकि इन ट्रैक्टरों में से आधे ट्रैक्टरों का पंजीयन भी नहीं किया गया है पंचायत से लेकर जिला पंचायत और विधानसभा तक चुनाव रेत से कमाए गए रुपयों से लड़ने की चर्चा हमेशा होती है मंगला और कोनी दो साल पहले पंचायत थे और अब निगम का हिस्सा है इसके बावजूद वहां रेत का धंधा जोरों पर चल रहा है यही हाल लोखंडी , कछार, लोखंडी और सिंदरी का भी है यहां की भी पंचायतों का प्रमुख व्यवसाय रेत उत्खनन ही है पंचायतों में अचानक बढ़ी ट्रैक्टरों की संख्या यह दर्शाती है कि इस रेत के धंधे में मनमाना मुनाफा होने की वजह से पंचायतों के जनप्रतिनिधियों ने भी इस पर मौन रखा हुआ है
