पृष्ठभूमि: क्या है विवाद
हाल ही में क्षत्रिय करणी सेना की छत्तीसगढ़ इकाई के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह तोमर उर्फ रूबी तोमर की गिरफ्तारी की गई थी। पुलिस का दावा है कि वह एक सूदखोर चलाने वाला था उधार देता था, वसूली के लिये जबरदस्ती का आरोप है।
गिरफ्तारी के बाद, उनकी छवि पुलिस द्वारा प्रदर्शनी गिरफ्तारी क़ैदियों जैसा तरीक़ा रहा ।
करणी सेना के द्वारा ऐसा बताया गया है कि गिरफ्तारी के बाद उन्हें सार्वजनिक रूप से जुलूस निकाल कर बीच रोड में पैरों से रौदा गया और उनकी पत्नी के साथ मारपीट की गई एवं उनके छोटे भाई की पत्नी के साथ पुलिस कस्टडी में थाना प्रभारी योगेश कश्यप के द्वारा अश्लील हरकते की गई

इस कार्रवाई से नाराज करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज शेखावत ने 10 नवंबर 2025 को एक “Facebook Live” में पुलिस और प्रशासन पर तीखे आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि अगर तोमर व अन्य के खिलाफ “अन्याय” हुआ है, तो उसके “सेनानियों” को “मजबूत प्रतिक्रिया” देने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि वे पुलिसकर्मियों के घरों तक जाएंगे यानी पुलिस के खिलाफ प्रतिकारात्मक चेतावनी दी।
इस बयान के आधार पर, रायपुर पुलिस ने शेखावत पर मामला दर्ज किया — आरोप है पुलिसकर्मियों को धमकी तथा भड़काऊ सामाजिक मीडिया टिप्पणी FIR में धाराएँ शामिल की गयी हैं: BNS की 224 (पब्लिक सर्वेंट को चोट या धमकी), 296 (अश्लील/अपमानजनक व्यवहार), और 351 (आपराधिक धमकी)।


जवाब में राज शेखावत स्वयं रायपुर के मौदहा पारा थाने पहुंच गए और करणी सेना के जबदस्त हंगामा के बीच पुलिस ने सामान्य कार्यवाही कर छोड़ दिया ।
इस पूरे घटनाक्रम और अन्याय / आजादी / स्वाभिमान के नारे के बाद, करणी सेना ने 7 दिसंबर 2025 को रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में एक बहुत बड़ी महापंचायत / न्याय पंचायत का आह्वान किया है — क्षत्रिय स्वाभिमान न्याय महापंचायत ।
जिसमें वे चाहते हैं कि राज्य-व्यापी राजपूत/क्षत्रिय समाज और पूरे देश से करणी सेना प्रमुख जुटें
इस महापंचायत के माध्यम से, प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर क्षत्रिय/राजपूत समाज में जागरूकता और एकता की लहर लाने का प्रयास किया जा रहा है ताकि भविष्य में ऐसे मामलों में वे संरक्षित महसूस कर सकें।
करणी सेना प्रमुख ने स्पष्ट किया कि हमारा विरोध केवल महिला के साथ हुए अश्लीलता और राजपूत समाज के युवक को बीच चौराहे में पैरों से रौंदने के खिलाफ है न कि वीरेंद्र तोमर के किए अपराधों के लिए , कानून अपनी कार्यवाही संविधान के दायरे में करे।

पुलिस व प्रशासन की दलीलें — और कानूनी पहलू
पुलिस का कहना है कि तोमर (और उसके सहयोगी) के खिलाफ पूर्व में कई शिकायतें थीं उधार वसूली, जबरन वसूली, अवैध संपत्ति सौदा, अवैध हथियार रखने आदि। गिरफ्तारी देश के तमाम कानूनी प्रावधानों के तहत की गई।
छत्तीसगढ़ के गृह विभाग या उच्चस्तरीय अधिकारीयों पर भी निगाहें होंगी — क्योंकि यदि ऐसा आंदोलन शांतिपूर्ण नहीं रहा, या सुरक्षा की दृष्टि से सरकार लचर पाई गयी, तो सामाजिक व कानून-व्यवस्था दोनों पर असर पड़ सकता है।
7 दिसंबर की महापंचायत — क्या उम्मीद है
करणी सेना ने पूरे देश से राजपूत/क्षत्रिय समाज को आने का आग्रह किया है खासकर उन संगठनों को जो प्रदेश में सक्रिय हैं।
छत्तीसगढ़ में राजपूतों के 19 संगठन ने पहले ही प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से समर्थन की घोषणा कर दी है
इससे महापंचायत में अगर बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं, तो यह केवल एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक सामूहिक जन-मंच बन सकता है ।
यदि यह महापंचायत शांतिपूर्ण रहे और उसमें केवल अपील, न्याय स्वाभिमान के नारे हों तो करणी सेना का पक्ष मजबूत हो जाता है और आने वाले समय में राजपूत समाज एकता और मजबूती से प्रदेश में जगह बनाएगी।
लेकिन, अगर किसी प्रकार की हिंसा, झड़प या अव्यवस्था होती है तो पुलिस/प्रशासन द्वारा कड़ी कार्रवाई हो सकती है; अगली कानूनी चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं।
इसके साथ ही, मीडिया और आम जनता की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण होगी — क्या इसे एक “स्वाभिमान आंदोलन” के रूप में देखा जाएगा, या “कानून-विरोधी जमावड़ा” के रूप में।
सामाजिक और राजनीतिक मायने: क्या हो सकते हैं प्रभाव
जातिगत व सामाजिक संवेदीकरण: छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में — जहाँ राजपूत/क्षत्रिय समाज की संख्या कम है — यदि यह आंदोलन सफल हुआ, तो अन्य “माइनॉरिटी जाति-समुदाय” भी अपनी आवाज़ उठाने के लिये प्रेरित हो सकते हैं। इससे जातिगत पहचान व सम्मान का मामला फिर से सामने आ सकता है।
कानून व व्यवस्था पर दबाव: यदि इस तरह के संगठन बड़े-बड़े इकट्ठे होने लगें, और पुलिस व प्रशासन को बार-बार विवादों से निपटना पड़े — तो राज्य की कानून-व्यवस्था और सामाजिक शांति पर असर पड़ सकता है।
राजनीतिक संभावनाएँ: कुछ राजनीतिक दल या नेता इस आंदोलन का लाभ उठा सकते हैं उच्च जातियों के वोट बैंक को साधने में। या फिर, स्थानीय राजनीति में छोटे जातीय समूह बनाम उच्च जातीय समूह विषय फिर से गरमा सकता है।
समुदाय में अस्थिरता: अगर आंदोलन हिंसात्मक होता है या यदि इसमें समाज के अन्य वर्गों को एक दुश्मन के रूप में दिखाया गया तो सामाजिक तालमेल और ढाँचा प्रभावित हो सकता है।

