राजनांदगांव. महान दार्शनिक शिक्षाविद् एवं देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन् जी के मंगल स्मरण एवं राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के अतीव महत्वा परिप्रेक्ष्य में नगर के विचारविज्ञ प्राध्यापक कृष्ण कुमार द्विवेदी ने समसामयिक चिंतन-विमर्श में कहा कि राष्ट्र निर्माण के आधार शिक्षक को सुशिक्षा एवं सार्थक ज्ञान के प्रखर प्रकाश पुंज बनकर शिक्षार्थी को राष्ट्रबोध से आलोकित करना होगा। सुशिक्षा से ही व्यक्ति सार्थक अर्थो में ज्ञानी होकर समग्र व्यष्टि और समष्टि का हितकारी होता है। हमारी भारतीय पुण्यधरा में सतनातन काल से ऋषि-महर्षि, आचार्य की शिक्षा – विद्या लोक कल्याणकारी रही है। ऋषिवर विश्वामित्र, गुरू सांदीपनी, महर्षि परशुराम, आचार्य चाण्यक्य, आदि सभी ने राष्ट्र-समाजहितकारी सुशिक्षा-सुविद्या को ही शिक्षार्थियों को प्रदान किया। इसलिए तत्समय में गुरूकुल शिक्षा आश्रमों से निकले छात्र पूर्ण स्वावलंबी, आत्मविश्वासी, परोपकारी और राष्ट्र उत्थान के प्रमुख सूत्रधार बने थे और देश को अखिल विश्व में विश्वगुरू का दर्जा दिलाया था। वस्तुत: शिक्षक का मूल उद्देश्य हमेशा अपने शिक्षार्थी को सुशिक्षित करना ही होता है। आगे प्राध्यापक द्विवेदी ने विशेष जोर देकर बताया कि आदर्श शिक्षक का दायित्व सुशिक्षा का है तो दूसरी ओर सार्थक अर्थो में शिक्षार्थी को सुशिक्षा प्राप्त करके निरंतर अध्ययन-अभ्यास से ज्ञानी बनना चाहिए। सुशिक्षा शिक्षार्थी को धन-मान, समृद्धि-सम्मान के साथ एक सीमा तक भौतिक सुख-सुविधाएं तो प्रदान करती हैं परंतु अर्जित सार्थक ज्ञान से ही शिक्षार्थी/व्यक्ति को शाश्वत सुख और आनंद प्राप्त होता है और उसकी आत्यान्तिक समस्याओं का विनाश भी होता है। साथ ही त्रिताप से शांति मिलती है एवं राष्ट्र-समाज कल्याण में मन-प्राण से समर्पित हो पाता है। इसलिए छात्र-शिक्षार्थी को सुशिक्षित होने के साथ-साथ निरंतर सद्ज्ञान भी प्राप्त करते रहना चाहिए। इसके जीवंत उदाहरण आदर्श शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन एवं डॉ. ए.पी.जे. कलाम हैं। वर्तमान शिक्षक-शिक्षार्थी पीढ़ी को शिक्षक दिवस पर यही सत्संकल्प लेकर राष्ट्र के मुख्यधारा में सक्रिय सहभागिता करना चाहिए।
