सत्य सनातन संस्कृति की जय-विजय का महापर्व – द्विवेदी

राजनांदगांव. भारतीय सनातन संस्कृति के अतीव गौरवशाली पर्व परंपरा के अनुपम पर्व विजयादशमी को समग्र देश-धरती का सत्य की जय-विजय का महापर्व निरूपित करते हुए नगर के विचारप्रज्ञ प्राध्यापक कृष्ण कुमार द्विवेदी ने सामयिक विचार चर्चा में बताया कि सत्य, साहस, शौर्य, सदाचार के साथ जीवन पथ पर अग्रसर होने की अनुपम प्रेरणा देने वाला यह उत्सवा पर्व हमारी सांस्कृतिक एकता-अखंडता का अमर-आदर्श प्रतीक भी है। वस्तुत: विजयादशमी उत्कृष्टतम संस्कृति पर्व है जिसे हम शीर्ष उत्तरीय पर्वतीय वनप्रांतरों से लेकर सुदूर दक्षिणी पठारी-तटीय प्रदेश तथा द्वीप-दीपांतरों में पूर्ण उत्साह, श्रद्धा और विश्वास से मनाते हैं। अखिल ब्रम्हाण्ड के भगवान विष्णु के अवतारी श्रीराम द्वारा रावण वध कर असत्य पर सत्य की जय-विजय प्राप्ति का यह अनूठा पर्व हमें अनेक श्रेयष्कर परंपराओं के सहज निर्वहन का जोश, उत्साह, उल्लास भरता है। नौदिवसीय व्रत-उपवास, तप-तपस्या, पूजा-साधना, पावन मंगल-कलश, ज्योति-जंवारा, यात्रायें, रामलीला मंचन-प्रदर्शन, सिद्धपीठ-मंदिर दर्शन, जम्मा-जागरण, कन्या-पूजन, शस्त्र-पूजन, वनस्पत्ति-पूजन, नीलकंठ-दर्शन तथा रंग-बिरंगे, वस्त्राभिषूण पहन, ढोल-मंजीरा, नगाड़ें, तुरही, मुरही वादन के साथ सिंदूर-खेला, गरबा-रास, डांडिया-नृत्य आदि पावन मोहक परंपराओं के अनूठे आयोजन का पखवाड़ा पर्व है। आगे प्राध्यापक द्विवेदी ने विशेष रूप से बताया कि यह विजयादशमी पर्व अनीति, अत्याचार और आतंक के विरूद्ध खड़े होने, संघर्ष करने और विजय प्राप्ति करने की शिक्षा-संकल्प लेने का भी सुअवसर प्रदान करता है। साथ ही पूर्ण कलावतारी श्री कृष्ण की श्रीभगवद गीता-वाणी, यतो धर्म:, ततो जय: के महासत्य को प्रमाणित भी करता है। आईये सत्य सनातन धर्म के इस जय-विजय महापर्व को और इसकी श्रेष्ठ परंपराओं को हम सभी और अधिक समृद्ध करें तथा मन-प्राण से जीवन व्यवहार-चर्या में धारण करने के लिए संकल्पित भी होवे।