राजनांदगांव. भारतीय सनातन संस्कृति के श्रेष्ठतम उत्सवा पर्व दीपावली के परम पुनीत परिप्रेक्ष्य में नगर के विचार प्रज्ञ प्राध्यापक कृष्ण कुमार द्विवेदी ने समसामयिक विचार चिंतन टीप में बताया कि समग्र स्वच्छता, श्रेष्ठ स्वास्थ्य संवर्धन और सार्थक अर्थ समृद्धि का दीपावली त्यौहार प्रकृति के अनुपम संसाधनों, उत्पादनों के साथ सहज, उमंग, उल्लास प्रसन्नता का प्रकाश पर्व है। विशेषकर नव खाद्यान्न, फल-कन्दमूल, पुष्प-पात, दूध-दही, घी-मक्खन, गुड़-शक्कर आदि से बने मिष्ठान अर्पण से आराध्य देवी-देव पूजन के लिए नववसन धारण कर सहज-सरस, मनरंजन का अदभुत पर्व है। उल्लेखनीय है कि यह महत्तम सांस्कृतिक समृद्धि पर्व अपनी क्षेत्र की रेत-माटी से बने दीपों को तिलहन-तेल, कपास-बाती के साथ संध्या मुहूर्त काल में प्रज्जवलन करने का अनोखा, अतिआनंदिता अवसर भी प्रदान करता है। संपूर्ण जैव-जगत के परमेश्वर मनुज अवतारी मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की, सत्य-विजय उपरांत मातृभूमि – संस्कारभूमि अयोध्या लौटने पर जन-जन द्वारा सम्मान, स्वागत करने के अनमोल, पुण्यात्म पलों की और अधिक सुदृढ़ संकल्पित करने को मिट्टी दीपों से ही प्रकाशित करना सर्व कल्याणकारी माना गया है। आइये हम सभी अपनी महान अद्वितीय मिट्टी दीप प्रज्जवलन की सर्वोत्तम परंपरा को चिरस्थायी करने में अनिवार्य भूमिका अदा करें। वैसे भी कोटि-कोटि जनों के आराध्य, अपार-अनंत-आस्था विश्वास के प्रादर्श श्रीराम का स्वागत – सम्मान आम जन के श्रमशील हाथों से निर्मित मिट्टी दीप से करना ही महा-पुण्यकारी, अतीव सुफलदायी माना गया है तथा परमपुरूष के प्रति सेवा-समर्पण भाव का श्रेयष्कर आदर्श प्रतिदान भी होता है। देश-प्रदेश-क्षेत्र की वास्तविक समृद्धि के लिए भी अनिवार्य होता है कि सर्व जन-जन देशी, स्थानीय उत्पादों को ही अपनाएं हर हाल में क्रय-विक्रय करें तभी राष्ट्र के विकास में प्रत्यक्ष रूप से सहभागी बनते हैं। यही इस महापर्व का जन-जन, सर्वजन के लिए श्रेष्ठ – सार्थक – संकल्प होगा।
